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स्कूली बच्चों का भारी बस्ता उनके शारीरिक एवं मानसिक विकास मे बाधा

  रंग ला रही है आयुक्त शहडोल संभाग की पहल, बच्चों के बस्तों का बोझ हुआ कम  

उमरिया - बीमार व्यक्ति को चिकित्सक उसके उम्र के अनुसार ही दवाई की खुराक बताता है। आधुनिकता एवं पश्चिमी सभ्यता का अंधा अनुकरण कर समाज मे कुछ ऐसी परंपराएं चल पडी है। जो समाज हित मे नही है। इन्ही पंरपराओं मे से एक परंपरा है अभिभावको की छोटे बच्चो से अत्याधिक आशायें। यह सही है कि बच्चों मे संस्कार तथा सीख की नींव प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा के दौरान पडती है। इसका आशय यह नही है कि इसी उम्र मे बच्चे अपनी प्रतिभा से अपने अभिभावको की सभी आकांक्षाये पूरी कर सकें। 

 वर्तमान मे शासकीय एवं अशासकीय विद्यालयांे के बीच बढती प्रतियोगिता के कारण अशासकीय विद्यालयों द्वारा अपनी स्कूल को सुपर दिखाने हेतु नर्सरी, प्राथमिक एवं माध्यमिक कक्षाओ मे किताबांे की संख्या लगातार बढाते जा रहे है। यह तो बात केवल कीताबों की । अशासकीय विद्यालयों द्वारा अलग अलग विषयो की अभ्यास पुस्तिकाएं (कापी) ड्राइंग बुक, आर्ट बुक एवं प्रोजेक्ट वर्क आदि के नाम से बच्चों के बस्तों में अनावश्यक वजन वृद्धि करती है।  जिसकी वजह से स्कूली बच्चो के बस्तो का बोझ बढता ही जा रहा है। किताबो की बढ़ती संख्या से जहां बाल मन मे मानसिक दबाव बनता है वहीं बच्चे की अन्य गतिविधियां तथा प्रतिभाओ मे विराम लग जाता है। स्कूली बच्चा भार वाहक वाहन बनकर रह जाता है। उसे सदैव शिक्षको का भय तथा अभिभावको की आंकाक्षाओ मे खरा उतरने का डर सताता रहता है। खेलने खाने की उम्र मे ही वह बच्चा शारीरिक एवं मानसिक रूप से अवसाद मे चला जाता है। 

 प्रदेश सरकार के स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा स्कूली बस्तो का बोझ कम करने की पहल शुरू की गई है। आयुक्त शहडोल संभाग श्री राजीव शर्मा द्वारा पहल करते हुए शहडोल संभाग में इस अभियान को अमलीजामा पहनाने हेतु विशेष प्रयास की है। उन्होंने उमरिया जिले में 5 अगस्त को सामुदायिक भवन उमरिया में कार्यशाला का आयोजन करवाकर जिले के समस्त शिक्षा जगत से जुड़े अधिकारियों, कर्मचारियों , शिक्षकों को इस दिशा में कार्य करने के निर्देश कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव की उपस्थिति में दिए। उन्होंने कहा कि बालमन को बाधित करना उनके मानसिक विकास को रोकना है। इसके साथ ही बच्चों को अधिक वजन का बस्ता देने से उनमें शारीरिक समस्यायें जैसे रीढ़ की हड्डी का प्रभावित होना, बच्चों की वृद्धि रूक जाना, कमर मे दर्द, मेरू दण्ड का विकृति हो जाना आदि जैसी समस्यायें पनपनें लगती है। इस पहल का सुखद परिणाम सामने आने लगा है। जिले की हाई स्कूल एवं हायर सेकेण्डरी 152 अशासकीय शालाआंे तथा 136 शासकीय शालाओं में एक साथ एक सप्ताह तक स्कूली बच्चों के बस्तों का वजन लेकर शिक्षकों एवं अभिभावकों को समझाईश दी गई। इसी तरह सर्व शिक्षा अभियान के तहत जिले की 846 प्राथमिक , माध्यमिक शालाओं में डीपीसी , एपीसी, बीआरसी, सीएसी, बीएसी आदि द्वारा संयुक्त अभियान चलाकर सभी स्कूलों में बस्तें की माप कराई गई तथा संस्था प्रमुखों को समझाईश दी गई कि प्राथमिक कक्षाओं के विद्यार्थियों के बस्ते का बोझ 2.5 किलोग्राम से 3.5 किलोग्राम तथा माध्यमिक कक्षाओं के विद्यार्थियों के बस्ते का बोझ 3 किलोग्राम से 5 किलोग्राम तक ही होना चाहिए। बस्ते का बोझ कम करनें के लिए यह भी समझाईश दी गई कि विद्यार्थियों को स्कूल के टाईम टेबिल के अनुसार ही पुस्तकों को लाने की समझाईश दी जाए। प्राथमिक कक्षाओं के विद्यार्थियों की पुस्तकों का संधारण स्कूल स्तर पर भी किया जा सकता है। 

 कलेक्टर संजीव श्रीवास्तव द्वारा इस पहल को आगें बढ़ाते हुए जहां स्कूलों में बस्तों के बोझ की माप कराई गई वहीं इस अभियान में निरीक्षण का दायित्व निभाने ंवाले अधिकारियों एवं संस्था प्रमुखों से इस आशय का प्रमाण पत्र  प्राप्त किए गए कि अब निर्धारित वजन से अधिक बस्ते लेकर बच्चे स्कूल नही आते।

(अन्जनी)

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