बाघों के गढ़ बाँधवगढ में 07 दिसबंर से दो दिनों तक गूंजेगी कबीरवाणी,टाइगर रिसर्व के कोर एरिया स्थित कबीर कबीर मंदिर में कबीरपंथी अनुयायियों ने पूजा पाठ कर आयोजन की शुरुआत की,देश भर से आये 12 हजार से अधिक कबीर भक्त हुए शामिल,पार्क प्रबंधन ने की चुस्त-दुरुस्त व्यवस्था।
कबीरपंथ की गंगोत्री है बाँधवगढ
बाघों का गढ़ बाँधवगढ भक्ति और अध्यात्म का एक बड़ा केंद्र है जिसमे कबीर गुफा के बड़ा विशेष स्थान है,15 वीं शताब्दी में संत कबीर ने यहां अपना रहवास बनाया तपस्या की और कई वर्षों तक तप किया इसी दौरान बघेल राजाओं ने भी उनसे शिष्यत्व ग्रहण कर लिया था,कबीरपंथियों की माने तो कबीर धर्म की शुरुआत बाँधवगढ से ही हुई थी,और कबीर धर्मावलम्बी बाँधवगढ को कबीरपंथ की गंगोत्री मानते हैं।
प्रबंधन ने किये चाकचौबंद इंतजाम
हिंसक वन्य जीवों की मौजूदगी वाले वन क्षेत्र में कबीर भक्त श्रद्धालुओं को आवागमन के दौरान कोई मशक्कत न हो लिहाजा पार्क प्रबंधन ने कड़ी और चाकचौबंद व्यवस्था की थी,जगह जगह पार्क के गश्ती दल के अलावा आवागमन के मार्ग में हर पचास मीटर पर एक पुलिस के जवान,सहित स्वास्थ्य विभाग का अमला एम्बुलेंस,8 हाथी दल के साथ पार्क के वरिष्ठ अधिकारी क्षेत्र संचालक आरएस मिश्रा,संयुक्त संचालक लवित भारती, एसडीओ सुधीर मिश्रा सहित समस्त रेंजर मौजुद रहे।
2001 से हुई कबीर मेले की शुरुआत।
बाँधवगढ में संत कबीर का आगमन का समय तो 15 वी शताब्दी का माना जाता है जिसके बाद उनके शिष्य धनिधर्मदास ने कबीरपंथ की नींव रखी और उसके बाद कबीरपंथ से लोग जुड़ते गए
बाँधवगढ में संत कबीर की गुफा में पूजा पाठ और मेले के आयोजन की शुरुआत वर्ष 2001 से हुई जिसके बाद से प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु यहां अगहन पूर्णिमा के दिन कबीर की पूजा करने पंहुचते हैं यहां देश और विदेश के कबीर पंथी यहां अगहन पूर्णिमा के दिन एकत्र होकर कबीर की पूजा और महिमा का गुणगान करते हैं और जिला प्रशासन से लेकर पार्क प्रबंधन तक कबीर भक्तों की सुरक्षा और अन्य सुविधाओं की पूरी व्यवस्था करता है।
(ब्यूरो रिपोर्ट)
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