QARANT NEWS KATNI - शासकीय जिला चिकित्सालय में सिविल सर्जन पद से सेवानिवृत हुए डाॅक्टर सतीष कुमार शर्मा (एस के शर्मा) ने सार्वजनिक रूप से विधानसभा चुनाव में उतरने की मंशा जाहिर की है। इसके पहले कटनी शासकीय जिला चिकित्सालय में सिविल सर्जन से रिटायर्ड डाॅक्टर अवधेश प्रताप सिंह (ए पी सिंह) को कांग्रेस ने चुनाव मैदान में उतारा था और कटनी की जनता ने डाॅ ए पी सिंह द्वारा चिकित्सालय उन्नयन के लिए किए गए कार्यों को ध्यान में रखते हुए सिंह को विधायकी नवाजी थी। मगर जब दूसरी बार ए पी सिंह को कांग्रेस ने चुनाव मैदान में उतारा तो उन्हें पराजय हाथ लगी थी। वैसे उनकी पराजय में सबसे बड़ा योगदान खुद उन कांग्रेसियों का था जो ए पी सिंह की एकला चलो नीति को अपनी स्वार्थ पूर्ति में रोड़ा समझते थे।
एकबार फिर हास्पिटल से रिटायर हुए किसी डाॅक्टर ने चुनाव लड़ने की खुली मंशा जाहिर की है। खबर तो यह भी मिल रही है कि कटनी शासकीय जिला चिकित्सालय में अपनी सेवाएं दे चुके सेवानिवृत चिकित्सक अशोक चौदहा भी मनतक - मनतक किसी राजनीतिक पार्टी के चुनाव चिन्ह पर विधानसभा चुनाव में उतरने के लिए गुडकतान बैठा रहे हैं।
वर्तमान राजनीति विशुद्ध रूप से स्वार्थ और गलाकाटू हो चुकी है। आपके साथ कदमताल करने वाला कब आपको लंगड़ी फंसा देगा कहा नहीं जा सकता। आप जिसको भलमनसाहत में सीढियां चढा रहे हैं वह ऊपर पहुंचते ही सीढ़ी ऊपर खींच लेता है।
सतीश शर्मा का यह कहना है कोई भी राजनीतिक दल उनकी लोकप्रियता का सर्वे करा ले तो यह संभव नहीं है। हर पार्टी के सौ बीमार अपनी - अपनी लोकप्रियता की सर्वे रिपोर्ट लिए अपने - अपने आकाओं की चौखट पर माथा टेक रहे हैं। यह काम तो शर्मा को खुद ही करना पडेगा।
सतीश शर्मा ने चिकित्सकीय कार्यकाल में लोकप्रियता जरूर हासिल की है लेकिन वह लोकप्रियता जनमानस को कहां तक वोट में तब्दील कर पायेगी कहना मुश्किल है। अगर एस के शर्मा में इतना आत्म विश्वास हो कि वह अपनी लोकप्रियता को अपने लिए वोटों में परिवर्तित करा लेंगे तो फिर शर्मा को बिना आगा-पीछा सोचे चुनावी दंगल में लंगोट घुमा देना चाहिए।
प्रदेश हो या शहर दो दलीय के दायरे में ही परिक्रमारत है। हरेक कोई किसी न किसी दल के खूंटे से बंधा हुआ कोल्हू के बैल की माफिक घूम रहा है। उसी का परिणाम है शहर का सराय (तबेले) में तब्दील हो जाना।
दो दशक से ट्रिपल इंजन की सरकार होने के बाद भी शहरवासी नारकीय जीवन जीने के लिए अभिशप्त हैं। विपक्ष से अच्छे तो मुक्तिधामवासी हैं। शहर के कुछ जिंदा लोगों द्वारा मेडिकल, इंजीनियरिंग, नर्सिंग काॅलेज की मांग की जा रही है। मगर मजाल है कि सत्ताधारी भाजपा को तो छोडिए प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस ने ही कोई जीवित आवाज बुलंद की हो !
माफियाओं का काकस रेत, खनिज से लेकर जमीन तक को निगलता चला जा रहा है। प्रशासनिक अधिकारी अंध-मूक-बधिर की माफिक ऊंट बिलैया लै गई हां जू हां जू करते रहते हैं। शहर विकास की अपार संभावनाओं को समेटे मानसिक नपुंसकता से ग्रसित जनप्रतिनिधियों के चंगुल में छटपटा रहा है।
क्या शहर के मतदाता दलीय राजनीति से परे जाकर किसी निर्दलीय प्रत्याशी को विधायक बनायेगा ? चुनाव मैदान में उतरने से पहले सतीश शर्मा को इस बात का सर्वे कर लेना चाहिए।
चुनावी गणित और चुनावी ऊंट का अनुमान लगाना बडे-बडे राजनीतिक पंडितों को चकरघिन्नी का नाच नचवा देता है। अभी टिकिट वितरण की प्रक्रिया तो शुरू होने दीजिए फिर देखिएगा हर पार्टी में टिकिट के हर दावेदार का एक दूसरे की चड्डी उतारने का खेल और उसके बाद शुरू होगा हरबार की तरह जाफर - जयचंद का नंगा नाच। शहरवासियों ने हाल ही में सम्पन्न हुए नगरीय निकाय चुनाव में इसका टेलर देखा ही है।
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