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कविता - नये साल की शुभकामनाएं! खेतों की मेड़ों पर धूल-भरे पांव को - सर्वेश्वर दयाल सक्सेना।



कविता -नए साल की शुभकामनाएं  

सर्वेश्वर दयाल सक्सेना


नये साल की शुभकामनाएं!

खेतों की मेड़ों पर धूल-भरे पांव को,

कुहरे में लिपटे उस छोटे-से गांव को,

नए साल की शुभकामनाएं!


जाते के गीतों को, बैलों की चाल को,

करघे को, कोल्हू को, मछुओं के जाल को,

नए साल की शुभकामनाएं!


इस पकती रोटी को, बच्चों के शोर को,

चौंके की गुनगुन को, चूल्हे की भोर को,

नए साल की शुभकामनाएं!


वीराने जंगल को, तारों को, रात को,

ठण्डी दो बन्दूकों में घर की बात को,

नए साल की शुभकामनाएं!


इस चलती आंधी में हर बिखरे बाल को,

सिगरेट की लाशों पर फूलों-से ख्याल को,

नए साल की शुभकामनाएं!


कोट के गुलाब और जूड़े के फूल को,

हर नन्ही याद को, हर छोटी भूल को,

नये साल की शुभकामनाएं!


उनको जिनने चुन-चुनकर ग्रीटिंग कार्ड लिखे,

उनको जो अपने गमले में चुपचाप दिखे,

नये साल की शुभकामनाएं!


साभार- कविता कोश


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संपादक 

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