भोपाल।प्राचीन भारतीय राजनीति और अर्थशास्त्र के दिग्गज पंडित चाणक्य की चोटी और मौजूदा राजनीति के धुरंधर रणनीतिकार भास्कर राव रोकड़े के तर्जनी की तुलना इन दिनों चर्चा का विषय बनी हुई है । कहने वाले तो यहां तक कह रहे हैं कि दूरदृष्टि, वैचारिक सूझ-बूझ, रणनीतिक कुशलता और संकल्पशक्ति में रोकड़े चाणक्य की कोटि के राजनीतिक गुरु हैं । एक हिंदी दैनिक ने प्रथम पृष्ठ पर भास्कर राव रोकड़े की फोटो के साथ तदाशय का कैप्शन देकर इस तुलना को हवा दी है। कहना न होगा कि चाणक्य के साथ भास्कर राव रोकड़े की तुलना उनके विरोधियों को रास नहीं आ रही है और वे तरह-तरह से इसे औचित्यहीन करार दे रहे हैं, जबकि उनके अनुमाइयों को इससे नई शक्ति और ऊर्जा मिली है। यही वजह है वे कि इसे वायरल कर रहे हैं, काबिलेगौर है कि ख्यात विचारक, लेखक, संपादक और राजनीतिक गुरू भास्कर राव रोकड़े यूं तो विगत 40 वर्षों से किसी न किसी रूप में राजनीतिक रणनीतिकार और गुरु की भूमिका हैं । जानने वाले बताते हैं कि मध्यप्रदेश एवं छत्तीसगर के दिग्गज नेता पूर्व मुख्यमंत्री स्व. श्यामाचरण शुक्ल और कांग्रेस के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष रहे स्व. मोतीलाल बोरा के वे गहरे पारिवारिक, राजनीतिक विश्वस्त, स्लाहकर और सहयोगी रहे हैं। यद्यपि उन दिनों पत्रकार एवं संवादक की मुख्य भूमिका में होने के कारण राजनीति में प्रत्यक्ष न होकर वे परोक्ष रूप से ही सक्रिय रहे । लेकिन पिछले कुछ वर्षों से वे पूर्णतः राजनीति के क्षेत्र में सक्रिय हैं और कांग्रेस को मजबूत व सक्षम बनाने में जुटे हैं । 2019 के मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के पूर्व वे ज्यादा चर्चा में तब आए, जब मोदी के गुजरात विकास मॉडल के बरक्स उन्होंने कमलनाथ के छिन्दवाड़ा विकास मॉडल को लेकर वजफ्ता एक पुस्तक लिखी और उसे मध्यप्रदेश के गांव गांव तक पहुंचाने और विधानसभा चुनाव में एक मुद्दा बनाने में कामयाब हुए । मध्यप्रदेश की जनता के सामने कमलनाथ को विकास पुरुष के रूप में स्थापित करने एवं प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनवाने में उन्होंने प्रमुख भूमिका निभाई, ध्यान देने योग्य है कि रोकड़े जी ने 2023 के विधानसभा चुनाव के 2 साल पहले से मध्य प्रदेश में "सम्यक अभियान" के माध्यम से प्रदेशव्यापी यात्राओं और सभाओं के जरिए युवाओं और बेरोजगारों के सवालों को उठाने तथा उसे मुद्दा बनाने में जबरदस्त कामयाबी पाई लेकिन दुर्भाग्यजनक है कि कॉंग्रेस की आंतरिक गुटवाजी के प्रभाव और चुनाव पूर्व सर्वे रिपोर्ट्स के बहकावे में आकर कमलनाथ और कांग्रेस आलाकमान द्वारा रोकड़े जी की सलाह को नजरंदाज कर दिया गया, जिसका खामियाजा कॉंग्रेस को पराजय के रूप में चुकाना पड़ा, पार्टी सूत्रों का कहना है कि लोकसभा चुनाव के संदर्भ में काँग्रेस आलाकमान ने भास्कर राव रोकड़े की विशेषज्ञ सेवाएं तो ली हैं, लेकिन राज्य के नेताओं की आपसी गुटबाजी के कारण कांग्रेस का चुनावी अभियान अभी तक पटरी पर नहीं आ पाया है । टिकिट वितरण से लेकर चुनाव कैंपेनिंग तक कॉंग्रेस पार्टी राजनीतिक परिस्थिति को देखते हुए आवश्यक फैसले न लेकर गुटीय हितों में ही उलझी नजर आ रही है,कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने इस पर चुटकी लेते हुए कहा कि यदि कॉंग्रेस को सीखना - सुधरना ही न हो तो भास्कर राव रोकडे ही क्यों साक्षात चाणक्य भी आ जाएं तो वे भी क्या कर लेंगे ।
(ब्यूरो रिपोर्ट)
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